जैव विविधता (biodiversity)


   जैव विविधता (biodiversity )

 पृथ्वी में लाखो प्रकार के जीव जन्तु एवं पेड़ - पौधे पाए जाते है । इनके आकार प्रकार एवं संरचना में अत्यधिक विविधता पाई जाती हैं जैव विविधता (biodiversity) का शाब्दिक अर्थ परिस्थित ( ecology ) के अंतर्गत उपयोग किए जाने वाले शब्द बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी का नवीन एवं संक्षिप्त स्वरूप है बायोडायवर्सिटी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम वाल्टर जी. रोशन ने सन 1986 मैं पौधों जंतुओं और सूक्ष्मजीवों के विविध प्रकारों और उनकी विविधताओं के लिए किया था 

दूसरे शब्दों में जैव विविधता समस्त जीवों जैसे पादप जंतुओं सूक्ष्मजीवों की जातियों की विपुल लाता है जो कि किसी निश्चय अभाव मैं पारस्परिक अंतरक्रियात्मक तंत्र की भांति उत्पन्न होती है 

जैव विविधता के स्थल जैव विविधता के आधार पर विश्व में बड़े 12 जैव विविधता वाले क्षेत्र हैं इन्हें वेविलोबियां सेंटर्स ऑफ डाइवर्सिटी कहां जाता है क्योंकि इन्हें रूस के एक वनस्पति ज्ञानी बेबीलॉन के द्वारा खोजा गया है अन्य जगहों में खेतों की फैसले के अधिकांश पौधे पान पर और वहीं से सब स्थान पर फैले सन 1982 में जीवन और डि- बेट नामक वनस्पति करीब 240000 पौधे ऐसे गिने जो खानपान जड़ी बूटी और रहन-सहन से जुड़े किसी भी काम में आते हैं यह विश्व के इन्हीं 12 केंद्रों में उगते हैं इनको मैगजीन सेंटर भी कहा जाता है जैव विविधता केवल एक संसाधन ही नहीं बल्कि विकासशील देशों की शक्ति है।

पृथ्वी पर जैव विविधता आठ बड़े भू भागों में पाई जाती है जिम 193 जैव भौगोलिक प्रदेश है प्रत्येक जैव भौगोलिक पारस्परिक तंत्र (ecosystems) से बना होता है जिम जैविक जातियों   समुदाय (communities) एक परिस्थिति किया भाग में रहते हैं उपोष्ढ उष्णकटिबंधीय भागों में स्थित विकासशील देश मे जैव विविधता शोपिष्ढ भाग में स्थित औद्योगिक देशों की अपेक्षा अधिक विपुल है फसलों और घरेलू जंतुओं के बेविलोबियां सेंटर्स ऑफ डाइवर्सिटी भी इन्हीं विकासशील देशों में स्थित है।

भारतवर्ष के पेनिनसुलर क्षेत्र दक्षिणी भारत मैं उपस्थित पश्चिमी घाट जैव विविधता के प्रमुख स्थल है तथा यहां भारतवर्ष में पाए जाने वाले पुष्पीय पौधों की 15000 प्रजातियां मैं से लगभग 5000 प्रजातियां अकेले केरल में पश्चिमी घाट में ही उपस्थित है इसी प्रकार भारतवर्ष में उपस्थित समस्त जंतुओं प्रजातियों में से लगभग 33% जंतु अकेले केरल के पश्चिमी घाट में पाए जाते हैं

जैव विविधता : विश्व के सन्दर्भ में 

जैव विविधता की कार्भूयिक भूमिका (functional role) और उसके महत्व (magnitube) के बारे में सूचनाओं का बहुत अधिक आभाव है। पृथ्वी पर लगभग 30 मिलियन जातियां पाई जाती है जिनमे से केवल 15 मिलियन को ही नाम दिया गया है और इनका विवरण दिया गया है। जैव वैज्ञानिकों ने जाति विविधता (species distribution) के विश्व वितरण में बहुत अधिक असामनता पाई है अर्थात् कही यह बहुत अधिक है और कही बहुत कम जाति विविधता में कमी के कई कारण दिए गए है जैसे भूमध्य रेखा से दूरी, अनुक्रमण (succession), ऊंचाई (elevation) और अव्यवस्था (disturbunce)। 

       पृथ्वी पर उपस्थित पहचाने एवं नामांकित की जा चुकी 1.5 मिलियन मे विभिन्न प्रकार मे जीवों की कुल संख्या निम्नानुसार है----

(1) हरे पौधे एवं कवक =3,00,000 प्रजातियां (20%)

(2) कीटों की प्रजातियां =8,00,000 प्रजातियां (53%)

(3) कशेरुकी जंतु = 40,000 प्रजातियां (3%)

(4) उभयचर जीव = 23,000 प्रजातियां 

(5) रेप्टाइल्स = 6,300 प्रजातियां 

(6) पक्षी = 8,700 प्रजातियां 

(7) स्तनधारी = 4,100 प्रजायियां 

(8) सूक्ष्म जीव = 3,60,000 प्रजातियां (24%) 

     उष्ण कटिबंधीय वनों की जैव विविधता सबसे अधिक पाई गई है वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी पर उपस्थित कुल प्रजातियों  में से लगभग आधी प्रजातियां अकेले आर्द उष्ण कटिबंधीय वनों (moist topical forest) में पाई जाती हैं। ऐसे वन सम्पूर्ण भाग के 7% क्षेत्र में पाए जाते हैं। यहां पर 80% कीट प्रजातियां 9% पाईमेट्स प्रजातियां पाई जाती हैं। 



    जैव विविधता के स्तर या प्रकार ---

जैव विविधता के तीन स्तर या प्रकार होते हैं -----

(1) प्रजाति विविधता (species diversity)

(2) आनुवंशिक जैव विविधता (genetic biodiversity)

(3) परिस्थितिक तंत्रीय जैव विविधता (eco system diversity)

जैव विविधता के प्रकार 

जैव विविधता निम्न प्रकार की होती है --- 

(1) आनुवंशिक विविधता (genetic diversity) = एक ही प्रजाति के जीवों के जीनों में होने वाले विविधताओं को आनुवंशिक विविधता या एक ही प्रजाति के अंदर होने वाली विविधता कहते हैं। ऐसी विविधताओं के कारण एक ही प्रजाति की कई समष्टियां बन जाती हैं इस प्रकार आनुवंशिक विविधता के कारण ही प्रजाति की जातियों की समष्टियों में विविधता बन जाती हैं। 

(2) प्रजाति विविधता (species diversity) = इस प्रकार की विविधता दो प्रजातियों के मध्य होते है इसके अन्तर्गत एक विशेष प्रक्षेत्र (Region) के अंदर उपस्थित प्रजातियों (species) के मध्य उपस्थित विविधताऐं आती हैं ऐसी विविधताओं का मापन उस क्षेत्र में उपस्थित विभिन्न प्रजातियों की संख्या के आधार पर किया जाता हैं। 

(3) पारिस्थितिक तंत्रीय विविधता ( Ecosystem diversity) = एक पारिस्थितिक तंत्र ( ecosystem) में कई भूरूप ( land forms) हों सकते है तथा प्रत्येक भू- भाग में विभिन्न एवं विशेष प्रकार की वनस्पतियां एवं जीव-जंतु पाए जाते हैं। इस प्रकार किसी पारिस्थितिक तंत्र में प्रजातियों की विविधता को ही पारिस्थितिक तंत्रीय विविधता कहते है। इस विविधता का मापन अपेक्षाकृत कठिन होता है क्योंकि इसके विभिन्न भुरूप या उप-पारिस्थितियों की सीमाएं स्पष्ट नहीं होती है। अतः पारिस्थितिक तंत्रीय विविधताओ के अध्ययन के लिए यह आवश्यक हों जाता हैं कि एक पारिस्थितिक तंत्रों के विभिन्न पारिस्थितिक निधो को भली भांति समझा जाए क्योंकि यहां पर उपस्थित समुदाय एक विशिष्ट प्रकार की प्रजाति जटिलता (species complexes) युक्त होता है ये जटिल जैव विविधता की संरचना एवं उसके संगठन से संबंधित होते है। 

     (जैव विविधता का महत्व)

(1) पारिस्थितिक तंत्र का स्थायित्व =  प्रारंभ में पर्यावरण वैज्ञानिक (ecologist) का विचार था कि प्रजाति विविधता (species diversity) या जैव विविधता पर्यावरण तंत्र (Ecosystem) के स्थायित्व से संबंधित होती हैं, परंतु आज यह स्पष्ट हो चुका है कि पर्यावरण तंत्र का स्थायित्व उसके अजैविक स्थायित्व(Abiotic stability) पर निर्भर होती हैं। इस प्रकार जैव विविधता पर्यावरण तंत्र या जैव मंडल को स्थायित्व प्रदान करती हैं। जब अजैविक घटकों (Abiotik components) जैसे - जलवायु , पानी , वायु , मृदा , वायु की रासायनिकता (chemishtry of air) में किसी प्रकार का उतार चढ़ाव (Fluctution) होता है, तब उस स्थान की जैव विविधता प्रभावित होती हैं। अतः पर्यावरण तंत्र के स्थायित्व में प्रभाव पड़ता है। 

(2) मानव आवश्यकताओ की पूर्ति =  जैव विविधता मनुष्य के लिए विभिन्न प्रकार से उपयोगी ऐसे जीव जंतुओं एवं पेड़ पौधों का प्रमुख स्त्रोत होता है, जिन पर मानव जाति भोजन (Food) , ईधन ( Fuel) , रेशा (Fibre) , औषधि (medicine) , एवं आवास ( shelter) आदि के निर्भर है। 

(3) पौषक पदार्थों का चक्रण एवं पुनर्चक्रण =  नम उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों (Wet tropical area) में पाई जाने वाली उच्च जैव विविधता (higher biodiversity) पोषक पदार्थों के चक्रण (cycling) एवं पुनर्चक्रण (Recycling) में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।


{जैव विविधता भारत वर्ष के संदर्भ में}

         भारत की स्थिति अब विकासशील और औद्योगिक देशों की बीच की है, यह विकासशील देशों से कुछ अधिक विकसित और औद्योगिक देशों कुछ कम विकसित है। भारत जैव विविधता की दृष्टि में बहुत अधिक धनी हैं। इसके जीवमंडल ( biosphere) का स्वाथ्य और इसके कृषि (Agriculture) , पशुपालन (Animal husbandry) , मछली उद्योग ( Fishries) , वनविधा आदि। 

सभी अच्छी स्थिति में है। साथ ही इनकी सांस्कृतिक विविधता ( cultural diversity) औषधि का देशज तंत्र (indigenous system of medicine) पुराने लोगों की बुद्धिमत्ता तथा उनका ज्ञान भी जैव विविधता को आधार देते है। भारत की जैव विविधता मुख्यतः परिवर्तनशील या भिन्न- भिन्न पर्यावरण, जैसे - अक्षांश (Latitude) , ऊंचाई (Altitude) , भौमिकी (Geology) , जलवायु (climate) ,देशान्तर ( Longitude) आदि में भिन्नता के कारण है। भारत का भौगोलिक क्षेत्र 329 मिलियन हेक्टेयर है और इसमें 7000 किलोमीटर का समुद्री किनारा है जलवायु के लगभग सभी प्रकार जैसे सबसे गरम भाग रेगिस्तान से लगाकर हिमालय के ठंडे आकषर्क भाग तथा इन दोनों चरम स्थितियों के बीच की जलवायु की सभी श्रेणियां भारत में मिलती हैं वर्षा (Rainfall) मिलीमीटर थार रेगिस्तान में तो 5000 मिलीमीटर चेरतपुंजी में होती है , हालांकि देश का क्षेत्रफल विश्व के कुल क्षेत्रफल का केवल 2 % प्रतिशत है किंतु इसमें कुल पौधों और जंतुओं की 5 प्रतिशत जातियां पाई जाती हैं। जैव विविधता भारत की एक महत्वपूर्ण शक्ति है पौधों की लगभग 45000 तथा जंतुओं की 68,371 जातियां भारत में पाई जाती है। भारत में कुल मिलाकर बैक्टीरिया ( bacteria) , कवक (fungi) , पादपों ( plants) और जंतुओं ( Animals) की 1,08,276 जातियां हैं। जिन्हें पहचाना जा चुका है और उनका विवरण दिया जा चुका है। इनमे से 84% जातियों में से कवक 21.2%पुष्पीय पौधे 13.9 %और कीट 49.3% है। यदि जातियों को संख्या के आधार पर देखा जाए तो केवल कीट (insects) ही भारत में भारत में आधी जैव विविधता का निर्माण करते हैं ये जातियां भूमि पर ताजे पानी में (Fresh watar) और समुद्री आवासों में (marine habitats) या सहजीवी या परजीवी (symbiont or parasite) के रूप मे रहती हैं। 

अधिक जाति विविधता (species diversity) और स्थानिकता (endemism) पाई जाती हैं दोनों हॉटस्पॉट क्षेत्रों में स्तनधारियों (mammals) , सरी स्रपो ( Reptiles) , उभयचरों ( Amphibians) , पक्षियों ( birds) , तथा उच्च पौधों की 5,332 स्थानिक जातियां                 ( Endemic species) पाई जाती हैं। 

इसके अतिरिक्त देश एक महत्वपूर्ण वेविलोवियन सेन्टर ऑफ डायवर्सिटी (vevilovion centre of diversity) है तथा यहां 167 महत्वपूर्ण कृष्य पादप ( cuttivated plant species) और पालतू जंतुओ (domesticted animal) का उदभव (orgin) भारत में हुआ है। निंमलिखित कुछ फसलें है जिसका उदभव भारत में हुआ और वे विश्व में फैल गई - चावल (Rice) , गन्ना ( sugarcane) , जूट ( jute) , आम (mango) , नींबू ( citrus) , केला ( banana) , बाजरे तथा ज्वार (millet) की जातियां मसाले , ओषधियां , सजावटी पौधे इत्यादि।


{जैव विविधता की कमी के कारण}

   जैव विविधता कमी के प्रमुख कारण निम्नलिखित है।  

       (1) आवासों का नष्ट होना (destruction of habitat ) :- मनुष्य अपने स्वार्थों की पूर्ति जैसे आवास एवं घास के मैदान बनाने, कृषि, खनन, उधोगो की स्थापना , राजमार्गों एवं सड़को के निर्माण विस्तार, बांध आदि बनाने के लिए वनों या पेड़ पौधों एवं जंतुओं के प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर रहा है, जिसके कारण वहां पर उपस्थित जीव जंतु दूसरे स्थानो पर चले जाते है अथवा वे शिकारी का शिकार हो जाते हैं अथवा उनके लिए भोजन की कमी हो जाती हैं तथा वे रोगों का शिकार हो जाते हैं। जिसके कारण उस स्थान की जैव विविधता समाप्त हो जाती हैं। 

उदाहरण --- हमारे देश में अकेले पश्चिमी घाट में तितलियों की लगभग 3 % प्रजातियां उपलब्ध हैं जिसमें से लगभग 70 % प्रजातियां आज विभिन्न कारणों से लुप्तता के कगार पर पहुंच चुकी हैं। 

(2) शिकार ( hunting) :- मनुष्य प्राचीन काल से ही अपने भोजन एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जंतुओं का शिकार करता आया है। जंतुओं में --खाल, टस्क , फर, मांस, ओषधियां, इत्र, सौंदर्य प्रसाधन सामग्री एवं शोभाकारी या सजावटी सामग्री के लिए उनका शिकार किया जाता हैं तथा इनका व्यवसायिक उपयोग किया जाता है, जिसके कारण जंतु विविधता में कमी आती जा रही है। 

(3) अतिदोहन (over explotation) :- प्रकृति में उपस्थित पौधों एवं जंतुओं का विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जाता हैं। आर्थिक रूप से उपयोगी प्रजातियों के साथ साथ प्रयोगशाला में विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधों एवं जीव जंतुओं का उपयोग व्रहतस्तर पर होने के कारण उनकी संख्या लगातार कम होती जा रहीं है और वे विलुप्तता के कगार पर पहुंच चुके हैं। 

उदाहरण --- घटपर्णी नीटम , साइलोटम जैसे पौधे एवं मेढ़क ( राना टिग्रीना) जैसे जंतु व्हेल जेसी मछली का उपयोग औषधि बनाने एवं मांस प्राप्त करने में लगातार होने के कारण आज इनकी संख्या भी कम होती जा रही है। 

              इसी प्रकार पोडोफाइल्स एको नीटम , डायस्कोरिया, राउउल्फिया , काप्टिस जैसे पौधों का औषधीय उपयोग होने के कारण इनकी संख्या भी लगातार कम होती जा रही है इस प्रकार ये अतिदोहन का शिकार हो चुके हैं।

(4)आज्ञाबधरो व अनुसंधान हेतु संग्रहण ( collection for zoo and research) :- आज सम्पूर्ण विश्व में जंगली पादप जंतु प्रजातियों को अध्ययन अनुसंधान कार्य एवं ओषधियां प्राप्त करने के लिए जैविक प्रयोगशालाओ में संग्रहित किया जा रहा है तथा मनोरंजन हेतु उन्हें अजायबधरो में कैद किया जा रहा है। बंदर, चिम्पाजी जैसे ---प्राईमेट्स का उपयोग अनुसंधान शालाओं में उनके आंतरिक संरचना एवं अन्य प्रकार के अध्ययनों में किया जाता है, जिसके कारण इनकी संख्या में लगातार कमी आती जा रही है। 

(5) विदेशज प्रजाति का परिचय ( introduction of exotic spescies):- आज हम विभिन्न प्रकार की विदेशी पादप एवं जंतु प्रजातियों का आयात कर अपने स्वार्थों के अध्ययन या परिचय के कारण देशों प्रजातियों के समक्ष भोजन एवं आवास जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। 

(6) कीटनाशको का उपयोग (use of pesticides) :- कीटनाशों एवं खरपतवारनाशी रसायनों के उपयोग ने भी जैव विविधता को प्रभावित करना प्रारम्भ कर दिया है इसके लगातार उपयोग के कारण बहुत सी पादप एवं जंतु प्रजातिया समाप्त होती जा रही है। 

(7) प्रदूषण (pollution) :- पर्यावरण प्रदुषण आज सर्वाधिक विकराल समस्या है, जिसके कारण आज वायु ,जल, मृदा, समुद्र, तालाब आदि प्रदूषित हो चुके हैं। इनके कारण जीवधारियों को सांस लेने हेतु शुद्ध वायु, पीने के लिए शुद्ध जल, पौधों की वृद्धि के लिए लिए शुद्ध मृदा एवं जलीय जंतुओं के आवास हेतु प्रदूषण रहित जल मिलना मुश्किल हो गया है। अतः वे विभिन्न प्रकार की बीमारियो का शिकार होते जा रहे है परिणामस्वरूप इनकी मृत्यु हो जाती है इस प्रकार प्रदूषण के कारण भी जैव विविधता में लगातार कमी होती जा रही है। 

(8) अन्य कारण ( other couses) ------

(¡) जीवों की प्रजनन क्षमता मे कमी होना 

(¡¡) खाध श्रंखला में जीवधारी की स्थिति 

(¡¡¡) वितरण सीमा 

(¡v) विशिष्टिकरण की सीमा 

(v) सामाजिक एवं आर्थिक कारण

{जैव विविधता के संरक्षण के कारण} 

{Reason for conseving bio}

         पर्यावरण एवं मानव की आवश्यकताओ की पूर्ति के दृष्टिकोण से जैव विविधता का संरक्षण निम्न कारणों से आवश्यक है ------!

(1) परस्पर निर्भरता के कारण (Reason of interdependence) :-  प्रकृति में कई प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र तथा प्रत्येक प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र में सैकड़ों पादप एवं जंतु प्रजातियां पाई जाती है प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र में उपस्थित सभी जीवधारी ऊर्जा प्राप्ति के लिए एक दूसरे पर निर्भर होते हैं एक कारक का अस्तित्व तभी संभव होता है जबकि दूसरा कारक भी सुचारू रूप से कार्य करे। पर्यावरण में उपस्थित सभी जीवधारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे पर निर्भर है। अतः जैव विविधता का संरक्षण अति आवश्यक है। 

(2) आर्थिक कारण (economic reasons) :- मनुष्य अपनी सभी प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रकृति में उपस्थित जीवों पर निर्भर है। मनुष्य प्रकृति में उपस्थित पेड़ पौधों एवं जंतुओं के उत्पादों का उपयोग करते हैं ईंधन के लिए लकड़ी, शिकार के लिए जानवर, भोजन प्राप्ति हेतु पादप आदि की सतत् उपलब्धता तभी संभव होगी जबकि प्रकृति के इन जीवों एवं पौधों की जैव विविधता का अनुपभोग्य महत्व ( non consumptive) भी होता है, जैसे --वैज्ञानिक अनुसंधान (scientific research), पक्षी परीक्षण (Bird watching) और वन्य जीवन पर्यटन (wild life tdurism) ऐसी क्रियाएं है जिनका उपयोग लाखों लोग करते हैं और जिसके कारण हजारों को रोजगार ( employment) मिलता है।  

(3) पारिस्थितिक कारण (Ecological reason) :- जैव विविधता पारिस्थितिक दृढ़ता (ecological stability) का एक प्रमुख भाग है और पारिस्थितिक दृढ़ता इसलिए आवश्यक है कि इस पर हमारा आर्थिक (economic) और जैविक (biological) जीवन निर्भर है इसका मूल्य किसी मानक आर्थिक भाषा ( standard economic language) में नहीं आंका जा सकता जैव विविधता के अभाव में पारिस्थितिक दृढ़ता के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है जो निश्चित ही हमारे लिए भी होगा। 

(4) जीवविज्ञानिक कारक (biological reason) :-  जैव वैज्ञानिक (biological) की दृष्टि से यदि देखा जाए तो पादपों ( plants) , जंतुओं ( animals) , कृष्ण पौधों ( cultivated plants) तथा पालतू जंतुओं ( domestic animals) व उनके जंगली संबंधियों ( wild relatives) का संरक्षण न करना हमारा बहुत बड़ा अनुउत्तरदायित्व (irresponsibility) होगा, बहुत से पादप वास्तव में बहुत मूल्यवान है क्योंकि ओषधियों (medicion) , पेस्टिसाइट्स ( pesticides) , भोजन ( food), तेल (oil), औद्योगिक उत्पादों ( industrial products) और जीन्स ( genes) का स्त्रोत है। जब हम जैव विविधता को संरक्षित करते हैं तो इसका अर्थ यह है कि हम भविष्य में जीने के लिए वेकल्पिकता को बनाए रखते हैं। 

                 {जैव विविधता के तप्त स्थल}
        { HOT SPOT OF BIODIVERSITY}

         प्रकृति के वे स्थल जहा पर समृद्ध जैव विविधता पाई जाती है परन्तु इन प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट बना रहता है ऐसे स्थल जैव विविधता के संरक्षण के दृष्टि कोण में तप्त स्थल (HOTSPOT) कहलाते हैं। 

तप्त स्थल की अवधारणा को नार्मन मायर्स ने 1988 में प्रस्तुत किया उन्होंने विश्व में 12 ऐसे तप्त स्थलो का निर्धारण किया जहां पर विश्व की लगभग {12%} जैव प्रजातियां पाई जाती है ये तप्त स्थल पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल 0.2% भूभाग घेरते है आज विश्व में कुल 25 तप्त स्थल बन चुके हैं जो कि पृथ्वी के 1.4% भूभाग को घेरे हुए है यहां सम्पूर्ण विश्व को 44% पादप प्रजातियां तथा कुल कशेरूकियों की 35% प्रजातियां पाई जाती है। 


          विश्व के इन 25 तप्त स्थलो में से दो भारत में पाए जाते और यह पड़ोसी देशों तक फैले हुए है भारत में प्रथम तप्त स्थल पश्चिमी घाट है जो श्रीलंका तक फैला हुआ है तथा दूसरा तप्त स्थल पूर्वी हिमालय में है जो म्यांमार तक फैला हुआ है भारत में विश्व के कुल भू भाग का केवल 2- 4 % भाग है लेकिन जैव विविधता में इसका अंशदान 8 % जातियों का है।

Read Also: The Red Data Book Explained: Conservation’s Key to Protecting Biodiversity
Read Also: Red Data Book advantage and disadvantage for indian plants
Read Also: World centre of primary diversity of domesticated plants


0 Comments

Post a Comment

Post a Comment (0)

Previous Post Next Post