कोशिका शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के Cellula शब्द से हुई है, जिसका अर्थ एक कोष्ठ या छोटा कमरा है। कोशिका के अध्ययन को सायटोलॉजी कहा जाता है। वर्तमान में इसे कोशिका विज्ञान भी कहा जाता है। सभा जीव-जन्तु, वनस्पतियों कोशिका के बने हैं।
➽ एक कोशिका स्वयं में ही एक संपूर्ण जीव हो सकता हैं जैसे - अमीबा, पैरामीशियम , क्लैमाइमिडोमोनस व बैक्टेरिया, इन्हे एक कोशिकीय जीव कहते हैं।
➽ एक कोशिकीय जीव जैसे कि अमीबा अपने भोजन को अंतर्ग्रहण, पाचन व श्वसन, उत्सर्जन, वृद्धि व प्रजनन भी करता है। बहुकोशिकीय जीवों में यह सभी कार्य विशिष्ट कोशिकाओं के समूह द्वारा सम्पादित किये जाते है।
➽ कोशिकाओं का समूह मिलकर ऊतकों का निर्माण करते है तथा विभिन्न ऊतक अंगो का निर्माण करते है।
➽ बहुकोशिकीय जीवों में अनेक कोशिकाएँ होती है जो एक साथ मिलकर विभिन्न अंगों का निर्माण करती है. जैसे -जन्तु, पादप, कवक आदि।
कोशिका की खोज
ब्रिटिश वैज्ञानिक रॉबर्ट हुक ने 1665 ई. में कोशिका की खोज की। रॉबर्ट हुक ने बोतल की कार्क की एक पतली परत के अध्ययन के आधार पर मधुमक्खी के छत्ते, जैसे कोष्ठ देखे और इन्हें कोशा नाम दिया । यह तथ्य उनकी पुस्तक मैक्रोग्राफिया में छपा । रॉबर्ट हुक ने कोशा - भित्तीयो के आधार पर कोशा शब्द प्रयोग किया ।
➽ वनस्पति विज्ञानशास्त्री स्लाइडेन एवम् जन्तु विज्ञानशास्त्री श्वान ने 1839 में प्रसिद्ध कोशावाद को प्रस्तुत किया । अधिकांश कोशाएँ 0.5ʋ से 20ʋके व्यास की होती हैं।
➽ 1674 ई. में एंटोनी वॉन ल्यूनेमहोक में जौदित कोशिका का सर्वप्रथम अध्ययन किया।
➽ 1831 ई में रॉबर्ट ब्राउन में कोशिका में केन्द्रक व केन्द्रिका का पता लगाया।
➽ रॉबर्ट ब्राउन ने 1831 ई .में केन्द्रक की खोज की।
➽ डुजार्डिन ने जीवद्रव्य की खोज की जबकी पुरकिंजे ने 1839 ई. में कोशिका के अंदर पाए जाने वाले अर्धतराल, दानेदार सजीव पदार्थ को प्रोटोप्लाज्म या जीवद्रव्य नाम दिया।
➽ कैमिलो गाल्जी ने 1898 ई .में बताया गाल्जी उपकरण या गाल्जीकाय की खोज की।
➽ फ्लेमिंग ने 1880 ई . में क्रोमेटिन का पता लगाया और कोशिका विभाजन के बारे में बताया।
➽ वाल्डेयर ने 1888 ई. में गुणसूत्र का नामकरण किया।
➽ वीजमैन ने 1892 ई. में सोमेटोप्लाज्म एवं जर्मप्लाज्म के बीच अंतर स्पष्ट किया।
➽ जी.ई. पैलेड ने 1955 ई.में राइबोसोम की खोज की।
➽ किश्चन रेने डे डुवे ने 1958 ई. में लाइसोसोम की खोज की।
➽ रिचर्ड अल्टमान ने सर्वप्रथम 1890 ई. में माइटोकान्ड्रिया की खोज की ओर इसे बायो- ब्लास्ट का नाम दिया।
➽ बेन्डा ने 1897-98 में माइटोकॉण्ड्रिया नाम दिया।
➽ शुतुमुर्ग चिडियों का अण्डा सबसे भारी एवं बड़ी कोशिका है।
जीवों में दो प्रकार की कोशिकाए पाई जाती है
(1) प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ:- प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ वे कोशिकाएँ कहलाती है जिनमें केन्द्रक-कला, केन्द्रक तथा सुविकसित कोशिकाओं का अभाव होता है। इनमें 70S प्रकार के राइबोसोम पाये जाते है। रचना के आधार पर कोशिकाएँ आद्य होती है। इनमें केन्द्रक पदार्थ स्वतंत्र रूप से कोशिका द्राव में बिखरे रहते है अर्थात केन्द्रक पदार्थ, जैसे-प्रोटीन DNA तथा RNA कोशिकाद्रव्य के सीधे सम्पर्क में रहते है। इनके गुणसूत्रों में हिस्टोन प्रोटीन का अभाव होता हैं।
उदाहरण - जीवाणु, विषाणु, बैक्टीरियोफेज रिकेसिया तथा हरे-नीलें शैवालों की कोशिकाएँ आदि।
(ii) यूकैरियोटिक कोशिकाएँ - यूकैरियोटिक कोशिकाएँ वे कोशिकाएँ कहलाती है जिनमें केन्द्रक कला केन्द्रक तथा पूर्ण विकसित कोशिकांग पाये जाते है। इनमें 80S प्रकार के राइबोसोम पाये जाते है।
इस प्रकार की कोशिकाएँ विषाणु, जीवाणु तथा नील हरित शैवाल को छोड़कर सभी पौधें विकसित कोशिका होते है। इनका आकार बड़ा होता है। इस प्रकार की कोशिका में पूर्ण विकसित केन्द्रक होता है जो चारों ओर से दोहरी झिल्ली से घिरा होता हैं। कोशिका द्रव्य में झिल्ली युक्त कोशिकांग उपस्थित होते है। इनमें गुणसूत्र की संख्या एक से अधिक होती है।
कोशिका का निर्माण विभिन्न घटकों से होता हैं जिन्हे कोशिकांग कहते है । कोशिका के निम्नलिखित तीन मुख्य भाग होते हैं। यथा -
(1) कोशिका भित्ति (Cell Wall):- कोशिका भित्ति केवल पादप कोशिकाओं में पायी जाती हैं। जन्तु कोशिकाओं में इनका अभाव होता है यह सबसे बाहर की पर्त होती है। जीवद्रव्य के स्रावित पदार्थ द्वारा इनका निर्माण होता हैं यह मोटी, मजबूत और छिद्रयुक्त होती है। कोशिका भित्ति मुख्यत: सेल्यूलोज की बनी होती है। यह पारगम्य होती है । बहुत से कवको तथा यीस्ट में यह काइटिन की बनी होती है ।
➽ प्राथमिक कोशिका भित्ति के ठीक नीचे अपेक्षाकृत मोटी, परिपक्व व स्थायी रूप से द्वितीयक कोशिका भित्ति होती है। यह सेल्यूलोज पेक्टिन एवं लिग्निन आदि पदार्थों की बनी होती है।
➽ प्लाज्मा झिल्ली (जीव कला) कोशिका द्रव्य की वह बाहरी सीमा है जो विभिन्न प्रकार के अणुओं तथा आयनों के अन्दर आने-जाने पर नियंत्रण रखती है तथा कोशिका द्रव्य में आयनों की सान्द्रता के अंतर को बनाये रखने में मदद करती है।
➽ प्लाज्मा झिल्ली को जीव कला तथा प्लाज्मालेमा आदि भी कहते है।
➽ कोशिका भित्ति वनस्पति कोशिकाओं में पायी जाती है, परंतु जन्तु कोशिकाओं में नहीं।
➽ प्लाज्मा झिल्ली जन्तु कोशिकाओं की सबसे बाहरी पर्त होती है जबकि वनस्पति कोशिकाओं में यह दूसरी पर्त होती है। यह वसा और प्रोटीन की बनी होती है।
(2) जीवद्रव्य (Protoplasm)- कोशिका के अंदर सम्पूर्ण पदार्थ को जीवद्रव्य कहते है। जीवों में होने वाली समस्त जैविक क्रियाएँ जीवद्रव्य में सम्पन्न होती है। इसलिए जीवद्रव्य को जीवन का भौतिक आधार कहा जाता है। आधुनिक जीव वैज्ञानिकों ने जीवद्रव्य का रासायनिक विश्लेषण करके यह पता लगाया कि उसका निर्माण किन-किन घटकों द्वारा हुआ है, किन्तु आज तक किसी भी वैज्ञानिक को जीवद्रव्य में प्राण का संचार करने में सफलता प्राप्त नहीं हुई। यह प्रकृति का रहस्यमय पदार्थ है।
➽ जोहैन्स पुरकिन्जे ने सर्वप्रथम 1840 ई. में प्रोटोप्लाज्म या जीवद्रव्य नाम दिया।
➽ जीवद्रव्य के संघटन में लगभग 80 प्रतिशत जल होता है तथा इसमें अनेक कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ घुले रहते है। कार्बनिक पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, न्यूक्लिक, अम्ल तथा एन्जाइम मुख्य है।
➽ अकार्बनिक पदार्थों में कुछ लवण, जैसे - सोडियम, पोटैशियम, कैल्सियम तथा आयरन के फॉस्फेट, सल्फेट क्लोराइड तथा कार्बोनेट पाये जाते है। ऑक्सीजन तथा कार्बन डाई ऑक्साइड गैसे भी जल में घुली अवस्था में पायी जाती हैं ।
➽ जीवद्रव्य के संघटन में 15 प्रतिशत प्रोटीन, 3 प्रतिशत वसा, 1 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 1 प्रतिशत अकार्बनिक लवण होते है।
(3) रिक्तिकाएँ (Vacuoles) – रिक्तिकाएँ तरल पदार्थों से भरी संरचनाएँ होती है तथा पादप कोशिकाओं में व्यापक रूप से पायी जाती है। विभाज्योतक कोशिकाओं में रिक्तिकाएँ अधिक संख्या में पायी जाती है जबकि परिपक्व कोशिकाओं में रिक्तिकाएँ बड़ी और कम होती है।
➽ प्रत्येक रिक्तिका चारों ओर एक झिल्ली से घिरी होती है जिसे रिक्तिका कला या टॉनोप्लास्ट कहते है।
➽ रिक्तिका के अंदर एक तरल पदार्थ भरा रहता है, जिसे रिक्तिका रस कहते है खनिज लवण जैसे, नाइट्रेट्स, क्लोराइड्स, फॉस्फेट आदि कार्बोहाइड्रेटस, एमाइड्स अमीनों अम्ल, प्रोटीन, कार्बनिक अम्ल, विभिन्न रंग , द्रव्य एवं अवशिष्ट उत्पाद आदि पाये जाते है।
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