पाचन तंत्र
पाचन वह रासायनिक प्रक्रिया है, जिसमें जीव एंजाइम की सहायता से भोजन के बड़े अणुओ ( कार्बोहाइड्रेट , वसा, प्रोटीन) को सरल अणुओं (कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज में, वसा को वासीय अम्ल और ग्लिसरॉल में तथा प्रोटीन को अमीनो अम्ल) में परिवर्तित कर शरीर के अवशोषण के योग्य बना देते है।
पाचन तंत्र में भाग लेने वाले विभिन्न अंग -
(i) मुँह :- मुँह की लार में एमायलेज नामक एंजायम पाया जाता है जिसके द्वारा कार्बोहाइड्रेट का पाचन होता है।
(ii) गुलेट ( भोजन नलिका) :- यह एक नलीनुमा रचना होती है जो भोजन को मुंह से आमाशय तक ले जाती हैं यह नलिका लगभग 10 इंच लम्बी होती हैं।
Human digestive system in hindi |
Human digestive system diagram in English |
(iii) आमाशय :- यह एक थैलीनुमा रचना होती हैं जिसकी दीवारों पर गैस्ट्रिक अम्ल ( जठर रस) का उत्पादन करती है। गैस्ट्रिक अम्ल भोजन का एक मुख्य अवयव प्रोटीन को पेप्टान में बदल देते हैं। अतः आमाशय प्रकृति अम्लीय होती है। अमाशाय में भोजन 3 - 4 घंटे तक रहता है। यहां पर भोजन का मंथन तथा आंशिक पाचन होता है।
- आमाशय में निकलने वाले जठर रस में दो एंजाइम पेप्सिन एवं रेनिन होते हैं। पेप्सिन भोजन के प्रोटीन को पेप्टोन तथा पालीपेप्टाईड में बदल देता है।
- रेनिन दूध की धुली हुई प्रोटीन केसिनोजेन को ठोस प्रोटीन कैल्सियम पैराकेसीनेट के रूप में बदल देते हैं।
- आमाशय में कार्बोहाईड्रेट्स का पाचन नहीं होता है।
(iv) पक्वाशय :- इसकी आकृति ' सी ' आकार की होती है। आमाशय के पश्चात अर्द्ध पचा भोजन पक्वाशय में आता है जो वास्तव में छोटी आंत का ऊपरी हिस्सा होता है। भोजन को पक्वाशय में पहुंचते ही सर्वप्रथम इसमें यकृत से निकले वाला पित्त रस आकर मिलता है। इसकी दीवारों पर भी ग्रंथियां पाई जाती है जिससे निकले एंजाइम शेष भोजन के अपरिवर्तित स्टार्च को शर्करा में तथा प्रोटीन को पेप्टान में बदल देते है। पक्वाशय की प्रकृति अर्थात इसकी ग्रंथियों से निकलने वाले रसों की प्रकृति क्षारीय होती है।
( v) छोटी आंत :- पक्वाशय के बाद भोजन छोटी आंत में जाता है, जो करीब 22 फीट लम्बी नली होती है। इसमें इलियम भी स्रवण करती है। इन रासो से भोजन के बड़े अणु छोटे अणुओ में विखंडित होकर अवशोषण के योग्य बन जाते है। एक दिन में मनुष्य की आंत से 6- 7 लीटर आंत्रीय रस स्रावण होता है।
- इरेस्पिन - यह प्रोटीन एवं पेप्टोन को अमीनो अम्ल में परिवर्तित करता है।
- माल्टेस - यह माल्टेस को ग्लूकोज में परिवर्तित करता है।
- सुक्रोज - सुक्रोज को ग्लूकोज एवं फैक्टोज में परिवर्तित करता है।
- लैक्टोज - यह लैक्टोज को ग्लूकोज एवं गैलेक्टोज में परिवर्तित करता है
- लाइपेज - यह इमल्सीफायड वसाओ को ग्लिसरीन तथा फैटी एसिड्स में परिवर्तित करता है।
(vi) बड़ी आंत :- छोटी आंत के बाद भोजन के पचे हुए अवशिष्ट पदार्थ बड़ी आंत में आते है, जहां जल का अवशोषण होता है। इस क्रिया के पश्चात अवशिष्ट पदार्थ मल के रूप में मलाशय में जाता है और अंतत गुदा द्वार से होकर मल के रूप मे शरीर से बाहर चला जाता है।
- बड़ी आंत दो भागों में विभक्त होती है। ये कोलोन तथा मलाशय कहलाते है।
- छोटी आंत तथा बड़ी आंत के जोड़ पर एक छोटी सी नली होती है, जो सीक्रम कहलाती है।
पित्ताशय
- पित्ताशय नाशपाती के आकार के एक थैली होती है जो यकृत के नीचे स्थित होती है जिसमें यकृत में निकालने वाला पित्त जमा रहता है।
- पित्त पीले रंग का क्षारीय द्रव होता है। जिसका 0. 7 प्रतिशत पित्त लवण 0. 28 प्रतिशत कोलेस्ट्रॉल तथा 0. 15 प्रतिशत लेसिथिन होते हैं।
- पित्त में 85 प्रतिशत जल 12 प्रतिशत पित्त वर्णक ph मान 7.7 होता है।
- पित्त में कोई एंजाइम नहीं पाया जाता है। इसकी प्रकृति क्षारीय होती है।
- पित्त अनेक उत्सर्जी एवं विषैले पदार्थों तथा धातुओं के उत्सर्जन का कार्य करता है। यह वसा अवशोषण में भी सहायक है। यह वसा का पायसीकरण करता है ताकि स्टीएप्सिन नामक एंजाइम वसा का अधिकतम पाचन कर सके।
- पित्त विटामिन A,D,K, वसाओ में घुले और विटामिन के अवशोषण में सहायक होता है।
- यदि यकृत कोशिकाएं रुधिर से विलिरूबिन लेना बंद कर दे तो रुधिर द्वारा विलिरुबिन सम्पूर्ण शरीर में फैल जाता है इसे ही पीलिया कहते है।
अग्न्याशय
- यकृत के बाद शरीर में अग्न्याशय मुख्यत सबसे बड़ी ग्रंथि है। यह नलिकायुक्त और नलिकाविहीन दोनों प्रकार की ग्रंथि है।
- इसका एक भाग लैंगरहैंस की द्विपीका कहा जाता है। इसके द्वारा इंसुलिन और ग्लूकेगॉन नामक हार्मोन का अंत: स्राव होता है।
- अग्न्याशयी रस में 98 प्रतिशत जल तथा शेष भाग में लवण तथा एंजाइम होते है।
- अग्न्याशयी रस एक क्षारीय द्रव है तथा इसका ph मान 7.5 - 8.3 है।
- अग्न्याशयी रस में कार्बोहाईड्रैट, वसा एवं प्रोटीन नामक तीन पाचक एंजाइम होते है इसलिए इसे पूर्ण पाचक रस कहा जाता है।
- इसमें मुख्यत पांच एंजाइम टिप्सिन, एमाईलेज, कार्बोक्सि - पेप्टीडेस, लाईपेज तथा माल्टेज पाए जाते है। इसमें माल्टेज एवं एमाईलेज कार्बोहाईड्रैट टिॄप्सिन प्रोटीन का तथा लाइपेज वसा का पाचन करता है।
इन्सुलिन
- इन्सुलिन की खोज 1921 ई. मे वैटिन एवं वेस्ट ने की थी ।
- एक अग्न्याशय के एक भाग, लैंगरहैंस की द्विपिका के द्वारा स्रावित एक प्रकार का हाॅर्मोन है, जो रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करता है।
- इन्सुलिन ग्लूकोज के उपापचय का नियमन करता है। यकृत में ग्लूकोज से ग्लाइकोजन के संश्लेषण की क्रिया को प्रेरित करता है।
- इन्सुलिन के अल्प स्रावण से मधुमेह या डायबिटीज नामक रोग हो जाता है। रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने से मधुमेह या डायबिटीज रोग होता है।
- इन्सुलिन के अधिक मात्रा में स्रावण से शरीर से ग्लूकोज की मात्रा कम होने लगती है जिससे हाइपोग्लाइसीमिया नामक रोग हो जाता है।
- हाइपोग्लाइसीमिया रोग के जनन क्षमता तथा दृष्टिज्ञान कम होने लगता है। व्यक्ति को अधिक थकावट तथा एठन महसूस होती है।
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