Family -Asteracea or Compositae

 


यह सबसे बड़े कुल के रूप में जाना जाता है। इस कुल में पुष्पीय पादपों के लगभग 10 सदस्य सम्मिलित हैं। इस कुल में 950 वंश एवं 20,000 प्रजातियाँ सम्मिलित की गई हैं, जिनमें से 697 प्रजातियों भारत में पाई जाती हैं। इस कुल के सदस्य सर्वव्यापी हैं अतः विभिन्न जलवायु में पाये जाते हैं किन्तु उग् प्रदेशों में अधिक पाये जाते हैं।

वर्धी लक्षण- 

प्रायः एकवर्षीय या वहुवर्षीय शाक जैसे हेलिएन्यस एत्रुस (Helianthus annus), टेगेटिस इरेक्टा (Tegetis erecta), काइजेंथियम (Chrisanthemum sps) आदि होते हैं, सिसुलिया एक्सिलेरिस (Cacsulia axilaris) जलीय शाक है जो दलदल वाली भूमि में होती है। वहुत ही कम झाड़ी जैसे- वरनोनिया सिनेरेसेंस (Vernonia cinerascens) और वरनोनिया आरबोरिया (Vernonia arboria) जो 1-5 मीटर झाड़ीनुमा शाक है।

जड़ :- मूसला जड़ तंत्र, डेलिया (Dahlia) में जड़ें फूल कर कंदिल हो जाती हैं। हीलिएन्यस (Helianthes) में कंद, प्रकंद पर वनते हैं। ही. ट्यूबरोसस (H. tuberosus) में कंद खाने योग्य होते हैं तथा इनमें इन्यूलिन (Inulin) पाया जाता है। बैलिस पेरेनिस (Bellis perenis) में लम्बे उपरिभूस्तारी पाए जाते हैं।

तना :- अधिकतर ऊर्ध्व, शाकीय, ठोस, शाखित, हीलिएन्थस ट्यूबरोसस (Helianthes tuberosus) में तना भूमिगत तथा कंदिल, बैंकेरिस (Bacharis) में पत्ती के समान पक्षीय। कभी-कभी दूधिया लैटेक्स उपस्थित ।

पत्ता :- एकान्तर, कभी अभिमुख जैसे हीलिएन्थस (Helianthes), चक्रों में जैसे जीनिया वटिर्सिलेटा (Zinnia verticilata) अननुपर्णी, सवृन्त, सरल, पिच्छकी अथवा हस्ताकार संयुक्त जैसे डेलिया (Dahlia), कॉसमॉस (Cosmos), शिराविन्यास जालिकावत, रेलहानिया (Relhania) में पत्तियाँ सुई समान सूच्याकार, कोरिम्बियम (Corymbium) में पत्तियों में समानान्तर शिराविन्यास, सॉन्कस (Sonchus) तथा कुछ अन्य वंशों में पर्णाधार पालियों (Auricles) में बनते हैं। पत्तियों पर अधिकतर रोम भी पाए जाते हैं। हीरेसियम(Hieracium) में ताराकार तथा सीनेसियो विस्कोसस (Seneco viscosus) में ग्रन्थियुक्त तथा चिपचिपे ।

पुष्यक्रम :- मुण्डक, यह असीमाक्ष प्रकार का पुष्पक्रम है जो कणिश से वनता है। कणिश के निचले सहपत्र वध्य हो जाते हैं तथा पुष्पावली वृन्त संघनित होकर विभिन्न आकार ग्रहण कर लेता है जैस चपटा, अवतल, उत्तल, गोला। मुण्डक के आधार पर सहपत्र पाए जाते हैं। पुष्पों की सख्या 1000 हीलिएन्यस (Helianthes) से लेकर केवल एक-एकीनोप्स (Echinops) तक पाई जाती है।

सहपत्र एक अथवा एकाधिक चक्रों में व्यवस्थित हो सकते हैं। मिकानिया (Mikania) में सहपत्रों की सख्या कम होती है तथा वे एक नलिका रूप परिचक्र बना लेते हैं। हीलिएन्यस (Helianthes) में सहपत्र पत्ती रूप में होते हैं तथा हेलीक्रायसम (Helichrysum) में कागज समान, वृलनुमा विलकीसिया (Wilkesia) में बंध्य सहपत्र नहीं होते तथा इरीऑब्रिक्स (Eriothrix) में सहपत्र अनुपस्थित होते हैं।

पुष्प :- पुष्पक द्विलिंगी, एकलिंगी अथवा अलिंगी हो सकते हैं। अधिकतर पचतयी, त्रिज्या समनित अथवा एकव्यास सममित, जायांगोपरिक ।


पुष्पक दो प्रकार के होते हैं-

बिम्ब पुष्पक तथा रश्मि पुष्पक। पुष्पकों की मुण्डक पर व्यवस्था निम्न प्रकार से हो सकती हैं- 

अ. मुण्डक पर पाए जाने वाले सभी पुष्पक नलिका पर तथा त्रिज्यासममित जैसे एजीरेटम (Ageratum), वरनोनिया (Vernonia)।

ब. मुण्डक के सभी पुष्पक जिवाकार तथा एकव्यास सममित जैसे लौनिया (Launca), सॉन्कस (Sonchus) 1

स. बिम्ब पुष्पक केन्द्र में, त्रिज्या सममित तथा नलिकादार तथा रश्मि पुष्पक परिधि की ओर, एक व्यास सममित, जिह्ववाकार अथवा द्विओष्ठीय ।

जव मुण्डक पर सभी पुष्पक एक प्रकार के होते हैं- नलिकादार अथवा जिल्ह्वाकार, तव स्थिति समपुष्पी कहलाती है; इसके विपरीत जब बिम्ब व रश्मि पुष्पक एक समान हों, जैसे बिम्व पुष्पक नलिकादार तथा रश्मि पुष्पक जिह्वाकार, तब पुष्प को विविध पुष्पी कहा जाता है।


विविध पुष्पी में विभिन्न स्थितियाँ पाई जाती हैं-

1. एस्टर प्रकार (Aster type)- परिधीय रश्मि पुष्पक स्त्रीकेसरी होते हैं तथा जिल्ह्वाकार दलपुंज होता है। विम्ब पुष्पक द्विलिंगी तथा निलकादार ।

ii. साययोक्लाइन प्रकार (Cyathocline type)- परिधीय पुष्पक नलिकादार, स्त्रीकेसरी, विम्व पुष्पक पुंकेसरी; नलिकादार जायांग में अण्डाशय अनुपस्थितः वर्तिकाग्र अविभाजित ।

iii. हीलिएन्थस प्रकार (Helianthus type)- रश्मि पुष्पक अलिंगी, दलपुंज जित्वाकार अण्डाशय विकसित परन्तु वर्तिका तथा बीजाण्ड अनुपस्थित, विम्ब पुष्पक द्विलिंगी तथा दलपुज नलिकादार । 

iv. सेन्टॉरिया प्रकार (Centaurea type)- रश्मि पुष्पक अलिंगी, नलिकादार दलपुंज, एकव्यास सयमित हो जाता है। जिसका कारण पश्च दंत का विस्तार हो जाना है। बिम्ब पुष्पक द्विलिंगी, नलिकादार ।

 v. कोट्यूला प्रकार (Cotula type)- रश्मि पुष्पक स्त्रीकेसरी, परन्तु दलपुंज अनुपस्थित। विम्व पुष्पक द्विलिंगी, नलिकादार। पुष्पक्रम विभिन्न प्रकार से व्यवस्थित हो सकते हैं। ट्राइडेक्स (Tridex) में एकल अंतस्थ, सॉन्कस (Sonchus) में युग्मशाखित ससीमाक्ष तथा, लॉनिया (Launea) में यौगिक असीमाक्ष में।

पुष्प :- सहपत्री अथवा सहपत्रविहीन, अवृन्त, त्रिज्या सममित, अथवा एक व्यास सममित। जायांगोपारिक, पचतयी, कभी-कभी चतुप्तयी जैसे कोटूला (Cotula), द्विलिंगी अथवा एकलिंगी। पुकेसरी तथा स्त्रीकेसरी अथवा अलिंगी।

बाह्यदल :- अधोवर्ती अण्डाशय के ऊपर तथा दलपुंज नलिका के आधार के चारों ओर कुछ रोम सीट अथवा शल्क पाए जाते हैं। इन को पैपस कहा जाता है। पैपस चिरलग्न होता है तथा बीजों के विकिरण में सहायक होता है।

दलपुंज - अधिकतर पांच, यदा-कदा चार, सयुक्तदल के विभिन्न आकार नलिकादार, जिल्ह्वाकार, द्विओप्ठीय, कोरस्पर्शी विन्यास, कोट्युला (Cotula) के रश्मि पुष्पक में दलपुज अनुपस्थित । अंतर्मुखी,

पुमंग :- पाच दललग्न पुकेसर, पुतन्तु जुड़े नहीं होते परन्तु द्विकोष्ठीय, आधारलग्न, परागकोप, जुड़कर एक नलिकादार बॉक्स बना लेते हैं। इसे युक्तकोपी अवस्था कहा जाता है।

जायांग :- द्विअण्डपी, सयुक्ताण्डपी, अण्डाशय अधोवर्ती, एकल, प्रतीत वीजाण्ड, आधारीय वीजाण्डन्यास, वर्तिकाग्र द्विपालित, वर्तिका रोमिल, वर्तिका के आधार पर मकरदकोष स्थित होता है।

फल : सिपसेला ।

बीज : अभ्रूणपोषी ।

उदाहरण हेलिएन्थस एन्नुस (Helianthyns annus) सूरज मुखी

प्रकृति :- वार्षिक शाक ।

जड़ :- शाखित मूसला (टैप) जड़।

तना : ऊर्ध्व, शाखित, हरा, रोमिल, धारीदार (रिव्वड), ठोस, बेलनाकार (सिलेंड्रिकल)।

पत्ती :- सरल, अननुपर्णी (एक्सस्टिप्यूलेट), सवृन्त (पीटियोलेट) एक शिरीय (यूनीकॉस्टेर) जालिकावत शिराविन्यास (रेटीक्यूलेट विनेशन)।

पुष्पक्रम :- असीमाक्ष (रेसीमोस) मुण्डक (केपीट्यूलम) यह चारों ओर से हरे सहपत्रों से घिरा रहता हैं।

पुष्प :- ये छोटे आकार के होते हैं तथा पुष्पक (फ्लोरेट) कहलाते हैं। परिधि की ओर रश्मि पुष्पक (रे फ्लोरेट) तथा केंद्र में विम्ब पुष्पक (डिस्क फ्लोरेट) पाए जाते हैं।

रश्मि पुष्पक :- परिधीय (पेरीफेरल), बड़े, आकर्षक, मादा अथरा अलिंगी (एसेक्सुअल), सहपत्री, अवृन्त (सेसाइल) एकव्यास सममित (जाइगोमोरफिक), अपूर्ण, (इनकम्प्लीट) अधोवर्ती (इन्फीरियर) अण्डाशय ।

बाह्यदलपुंज : रोमगुच्छ (पैपस) के रूप में।

दलपुंज :- 5 दल संयुक्तदली (गैमोपेटेलस) एक व्यास सममित (जाइगोमोरफिक) पीला, कोरस्पर्शी (वालवेट) विन्यास ।

पुमंग :- अनुपस्थित ।

जायांग :- द्विअण्डपी (याइकारसेलरी), सयुक्ताण्डपी (सिनकारपस) अण्डाशय अधोवर्ती (इनफीरियर) एक कोष्ठीय (यूनीलॉक्यूलर) आधारी बीजाण्डन्यास (बेसल प्लासेंटेशन), लम्बी वर्तिका, द्विशाखित वर्तिकाय (स्टिंगमा बाइफिड)।

पुष्प सूत्र :- Ebr.⊕♀K(pappus) C₅ A₀ G₂

बिम्ब पुष्पक:- ककेन्द्र में पाए जाते हैं। सहपत्री, अबून्त (सेसाइल) त्रिज्यासममित (एक्टीनोमोरफिक), द्विलिंगी (वाइसेक्सुअल) पूर्ण (कम्पलीट) जायागोपरिक (एपीगायनस)।

बाह्यदलपुंज:- रोमगुच्छा (पैपस) के रूप में।

दलपुंज :- 5 दल, संयुक्तदली (गैमोपेटेलस) ननिकावत (ट्यूबुलर), पंचदंती (फाइव दुष्ङ), पीला कोरस्पर्शी (बालवेट) विन्यास ।

पुमंग - 5 पुंकेसर, दललग्न (एपीपेटेलस), युक्त कोपी (सिनजिनेशियस), आधारलग्न परागकोष (बेसीफिक्सड्), द्विकोष्ठी (डायथीकस), अंतर्मुखी (इन्द्रोज)।

जायांग:- द्विअण्डपी (वाइकारपेलरी) युक्ताण्डपी (सिनकारपस) अधोवर्ती (इन्फीरियर), अण्डाशय एककोष्ठीय (यूनी लॉक्यूलर), एक बीजाण्ड, आधारी बीजाण्डन्यास (बेसंल प्लेसेंटेशन), लम्बी वर्तिका द्विशाखी (बाइफिड) वर्तिकाग्र ।

फल :- सिपसेला (Cypsela)।

बीज :- अभ्रूणपोषी (एक्स एल्ब्युमिनस)।

पुष्प सूत्र :- Ebr.⊕♀K(papus) C₅A₀G₂


उदाहरण:- ट्राइडेक्स प्रोकक्वेन्स (Tridex procumbens)

प्रकृति-: एकवर्षी शाक।

जड़ :- मूसला (टेप) जड़।

तना :- ऊर्ध्व, कोमल. भूशायी (प्रोस्ट्रेट), शाखित, शाकीय, वेलनाकार (सिलेन्ड्रीकल), रोमिल हेयरी)।

पत्ती -: अभिमुख (ऑपोजिट), अवृन्त (सेसाइल), अननुपत्री (एक्सस्टीप्यूलेट), लम्बाकार (ओवेट) कटावयुक्त, (इनसाइज्ड), निशिताप्र शीर्ष (एक्यूट एपेक्स), सतह रोमिल। एकशिरीय जालिकावत (यूनीकॉस्टट रेटीक्यूलेट) शिराविन्यास ।

पुष्पक्रम :- मुण्डक (केपीट्युलम) ।


पुष्प दो प्रकार के होते हैं -

रश्मि पुष्पक (रे फ्लोरेट) - अवृन्त (सेसाइल), सहपत्री, (वैक्टीयेट) पचतयी (पेन्टामीरस), अपूर्ण (इनकम्पलीट) एकलिंगी (मोनोसेक्सुअल), एक व्यास सममित (जाइगोमॉरफिक), जायागोपरिक (एपीगायनस), हल्का पीला, जिल्ह्वाकार (लिग्यूलेट)।

बाह्यदलपुंज :- रोमगुच्छ (पैपस) के रूप में चिरलग्न (परसिसटेंट)।

दलपुंज :- 5 दल संयुक्त (गैमोपेटेलस) कोरस्पर्शी (वॉलवेट), पीला, जिण्डाकार (लिग्यूलेट)।

पुमंग :- अनुपस्थित ।

जायांग :- द्विअण्डपी (बाइकारपेलरी), युक्ताण्डपी (सिनकारपस), अधोवर्ती (इन्फीरियर), अण्डाशय एक कोष्ठीय, आधारीलग्न (बेसल) बीजाण्डन्यास, एक वीजाण्ड, वर्तिका लम्बी, द्विशाखित वर्तिकात्र (वाइफिड स्टिग्मा)।

फल :- रोमयुक्त एकीन (Achene)

पुष्प सूत्र :- Ebr.⊕♀K(pappus) C₅A₀G₂

विम्ब पुष्पक (डिस्क फ्लोरेट) :- पूर्ण (कम्पलीट), त्रिज्या सममित (एक्टीनोमॉरफिक), अवृन्त (सेसाइल)

बाह्यदलपुंज :- रोम गुच्छ (पैपस) के रूप में, रॉएदार (हेयरी) चिरलग्न (परसिसटेंट)।

दलपुंज :- नलिकीय (ट्यूवलर), 5 दल, संयुक्त (गैमोपेटलस), कोरस्पर्शी (वालवेट) हल्का पीला, जिल्ह्वाकार (लिग्यूलेट)।

पुमंग :- 5 पुंकेसर, युक्तकोपी (जिसनजिनेशियस) अर्थात पुतन्तु स्वतंत्र तथा परागकोष जुड़े हुए। दललग्न (एपीपेटेलस) पुतन्तु लम्बे, परागकोष द्विकोष्ठीय (डाइङ्घीकस एन्थर)।

जायांग :- द्विअण्डपी (बाइकारपॅलरी) युक्ताण्डपी (सिन्कारपस) अधोवर्ती (इन्फीरियर), एक कोष्ठीय अण्डाशय आधारी (वेसल), वीजाण्डन्यास एक वीजाण्ड, वर्तिका लम्वी, द्विशाखित वर्तिकाप (वाइफिड स्टिंगमा)।

पुष्प सूत्र :- Ebr⊕♀K(pappus) C₅A₀G₂


आर्थिक महत्व-

1. हीलिएन्थस एनुस (Helianthus annus) सुरज मुखी- शोभाकारी ऊँचा शाकीय पौधा है। उद्योगों में, घरों में सुन्दर पुष्पों के कारण लगाया जाता है। वीजों से तेल निकाला जाता है जो हृदय रोगियों व उच्च कोलेस्ट्रोल वाले व्यक्तियों के लिए लाभकारी है।

2. हीलिएन्थस ट्यूबरोसस (Helianthus tuberosus) हाथीचुक भूमिगत ट्यूवर खाने के काम आते हैं। इनका उपयोग अल्कोहल उद्योग में भी किया जाता है।

3.  कारयेमस टिंक्टोरियस (Carthamus tinctorius) कुसुम सुन्दर पुष्प - पुष्यों से गुलावी रंग निकाला जाता है तथा चीजों से तेल। तेल का उपयोग दवाई के रूप में गठिया के उपचार में किया जाता है।

4. टेजेटस इरेक्टा (Tagetus erecta) गेंदा - शाकीय शोभाकर पौधा, पुष्पों से पीला रंग प्राप्त किया जाता है।


5. कुछ अन्य शोभाकारी पौधे -

(a) क्रायजेन्थिमम कैरिनेटम (Chrysanthemum carinatum) त्रिरंगी क्रायजेवीजाण्डन्यास न्थिमम।

(b) जीनिया एलिगेन्स (Zinnia elegans) यूथ एण्ड ओल्ड एज

(c) कैलेन्डूला ऑफिसिनेलिस (Calendula officinatis) पॉट मेरी गोल्ड

(d) डेलिया पिन्नेटा (Dahlia pinnata) गार्डन डेलिया

(e) कॉसमॉस बाइपिन्नेटस (Cosmos bipinnatus) कॉसमॉस

(f) एस्टर एमिलस (Aster amellus) एस्टर

6. लैक्ट्यूका सैटाइया (Lactuca sative) सलाद पत्ती हरी पत्तियाँ सलाद के रूप में खाई जाती है।

7. चिकोरियम इन्टिबस (Chicorium intybus) जड़े जिन्हें चिकोरी (Chicory) कहा जाता है पीस कर कॉफी में मिलाई जाती हैं।

8. एकलिप्टा एल्बा (Eclipta alba)- पत्तियों से तेल निकाला जाता है। जो केशवर्धक भृगराज तेल कहलाता है।

9. आर्निका एल्या (Arnica montana)- शुष्क पुष्पीय मुंडक आर्निका नामक दवा प्राप्त कराते हैं।

10. ब्लूमिया लैसिरा (Blumea lacera)- पत्तियों को काली मिर्च के साथ मिलाकर हैजा में उपयोग करते हैं।

11. ब्लूमिया बालसमीफेरा (Blumea balsamifera)- की पत्तियों से एक सुगंधित तेल (essential oil) प्राप्त होता है, जिसे व्लुमिया कैम्फर कहते हैं।

12. ग्राइनडेलिया कैम्पोरम (Grindelia camporum) - औषधि प्राप्त होती है जिसका उपयोग श्वास रोगों में किया जाता है।

13. तूमीलैगो फारफारा (Tussilago farfara)- पत्तियों का उपयोग सर्दी, खांसी तथा दमा में किया जाता है

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