Rutaceae(रूटेसी)

Rutaceae(रूटेसी)
Rutaceae(रूटेसी)
Family- Rutaceae 

वर्गीकृत स्थिति

 हचिन्सन (Hutchinson)   –     बेन्थम व हुकर(Bentham                                                             &Hooker)

आवृत्तबीजी (Angiosperms)    –        आवृत्तजीवी (Angiosperms)
द्विबीजपत्री (Dicoty ledonae)  –     द्विबीजापत्री (Dicofyledona)
लिग्नोसी (Lignosae)                –     पॉली पैटली (Polypetalae)
रूटेल्स (Rutales)                     –     डिसीफ्लोरी (Disciflorae)
रूटेसी (Rutaceae)                  –     जिलानिएल्स (Geraniales)                                                         –     रूटेसी (Rutaceae)

निदानिक लक्षण

          वृक्ष अथवा झाड़ी तथा कभी-कभी शाकीय रूप में। उष्ण अथवा समशीतोष्ण कटीबंधीय पौधे, लेकिन दक्षिण अफ्रीका तथा ऑस्ट्रेलिया प्रमुख केन्द्र, जहां इस कुल के पौधे बहुतायत में पाये जाते हैं।
            मूल रूप से वृक्ष प्रकृति के पौधे, जैसे कबीठ (कैथ), बेल-बिल्वपत्र, अथवा ‘क्लोरोजाइलोन Cloroxylon‘ तथा क्षुप-झाड़ी, जैसे नीबू, कामिनी इत्यादि। रूटा ग्रेवियोलेंस Ruta graveolens जैसे शाकोय प्रकृति के पौधे अत्यन्त बिरले होते हैं। ‘टोडलिया Todlia‘ नामक पौधे में गुलाब के समान कांटे होते हैं, जिनकी सहायता से वह आस पास की वनस्पतियों पर फैल जाता है। वैसे ही ‘पारमिग्निया ग्रिफिथाई Parmighea griffithai‘ एक काष्ठमय लता है, जो कांटो के सहारे दूसरे वृक्षों पर चढ़ जाती है।

वर्धी लक्षण

      शाखित मूसला जड़ तंत्र, तना उर्ध्व, बेलनाकार, ठोस, शाखिन तथा काँटेयुक्त होता है।
 
पत्तियाँ – एकांतरी किन्तु ‘इबोडिया Ebodia‘ में सम्मुख, अनुपर्णविहीन, सरल जैसे ‘डायोम्सा Diomsa‘ अथवा ‘बोरोनिया Boronia‘ (ऑस्ट्रेलिया) में होते हैं, लेकिन अधिकतर पौधों में पिच्छाकार संयुक्त पत्तियां होती हैं या पर्णफलक (Lamina) विभाजित रहता है। टिलीया (Ptelea) या बिल्वपन्न (Aegle) में 3 पर्णक होते हैं, जबकि फेरोनिया (Feronia) (कबीठ) में अनेक पर्णक रहते हैं तथा पत्ती का वृन्त और रेकिस (Rachis) चपटा होता है। रूटा (Ruta) में पत्ती वहुत कटी हुई होती है। नीबू, संतरा, मोसम्बी इत्यादि नीबू वंश की जातियों में पत्ती का डंठल फैला हुआ रहता है, उसके बाद एक स्पष्ट संधि दिखाई देती है और सिरे पर एक पर्णक। इस संधि की उपस्थिति के कारण नीबू की पत्ती हस्ताकार (Palmate), संयुक्त पत्ती मानी जाती है, जिसमें पार्श्व पर्णक लुप्त हो चुके हैं। इसी तरह इन पौधों में जो काँटे पाये जाते हैं वह भी 1-2 पृथक पत्तियों का रूपांतरण है।
                   पत्नियों का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण है- उड़नशील तेल ग्रंथियों की उपस्थिति। ये ग्रंथियाँ सूक्ष्म बिन्दु (Dots) की तरह साफ नजर आती हैं, या उसे मसलकर संघने पर तेल की सुगंध आती है। यह ग्रंथियाँ लयजात प्रकार की होती हैं, मतलब यह कि किसी स्थान से अनेक कोशिकाओं के विलयन के फलस्वरुप यह गुहिका बनती हैं।

पुष्पीय लक्षण –

पुष्पक्रम

            यह सामान्यत ससीमाक्ष (Cymose) रहता है। कबीठ (Feronia) में असीमाक्ष (Recemose) तथा कौरिया (Correa) अथवा नीबू इत्यादि में पत्नी के अक्ष में एकल पुष्प पाया जाता है। परन्तु नीबू में ही पत्ती के अक्ष में कुछ पुष्यों का ससीमाक्ष गुच्छों में पाया जाना ज्यादा सामान्य बात है। रूटा में द्विशारवी (Diachasial) ससीमाक्ष पुष्पक्रम होता है, जिसका मध्य पुष्प पंचतयी (Pentamerous) तथा दोनों पश्च (Lateral) पुष्प चतुष्टयी (Tetramerous) होते हैं।

पुष्प –

                     त्रिज्यासममित, उभयलिंगी, सामान्यतः पंचतयी जायांगधर, पूर्ण, द्विपरिदल पुंजी, संवृत (pedicellate), सहपत्री तथा सहपत्रिका युक्त (Bracteate and bracteolate), चक्रीय। अंडाशय के नीचे गूदेदार डिस्क (disc) की उपस्थिति एक प्रमुख लक्षण है। पुष्प के सभी अंगों में तेल ग्रंथि उपस्थित।

अपवाद

1. डिक्टॉम्नस कस्पारिया आदि वंशों में पुष्प एकव्यास सममित।
 
2. जेन्थोजाइलम, टोडालिया, इबोडिया में पुष्प एकलिंगी तथा फेरोनिया (कबीठ) में उभयलिंगी और एकलिंगी दोनों प्रकार के पुष्प, पुष्पक्रम में पाये जाते हैं।
 
3. ट्राइफेसिया में पुष्प त्रितयी तथा रूटा में पश्च पुष्प चतुष्टयी होते हैं।
 
4. प्लिओस्पर्मम में पुष्प परिजायांगी अथवा जायांगोपरिक होते हैं।
 

बाहादल

              बाह्यदल वियुक्त (रूटा) अथवा जुड़े (कॉरिया, कस्पारिया), पुष्पदल विन्यास कोरस्पर्शी अथवा कोरलादीन खान कान्सियल (imbricate quincuncial) प्रकार का, दल संख्या सामान्यः 5, (4- रूटा अथवा 3-ट्राइफेसिया) रंग हरा।
 

दलपुंज

     सामान्यत वियुक्त किन्तु ट्राइब कस्पेरि तथा कॉरिया में दल जुड़े हुए। कॉरिया में ये दल जुड़कर लंबी संकरी, घंटीनुमा आकार धारण करते हैं। पुष्पदल विन्यास कोरछादी, संख्या 3-4-5 (उपरोक्त बाह्रादलपुंज के विवरण में दिये गये उदाहरणानुसार), रंग सफेद अथवा पीला।
 

पुमंग 

       सामान्यतः 10, 5-5 की दो भ्रमियों में। इसमें बाहर के 5 पुंकेसर दलसम्मुख तथा भीतर के 5, बाहादल सम्मुख रहते है, अर्थात् पुमंगों की स्थिति दलाभिमुख-द्विवर्त पुंकेसरी (ओब्डिप्लोस्टेमनस) कहलाती है। पुंकेसरों की संख्या 8 (4+4) जैसा रूटा (पश्च पुष्प) अथवा 6 (3+3) जैसे ट्राइफेसिया की होती है। नीबू वंश की जातियों में पुंकेसर अनेक होते है, तथा 4-4, 5-5, 6-6, 7-7 पुंकेसर उनके पुंतंतुओं से जुड़कर पुंकेसरों के अनेक समूह बनाते हैं- इसे बहुसंधी स्थिति कहते हैं, जब कभी पुंकेसरों की एक भ्रमी या चक्र उपस्थित हो, जैसे ‘झेन्योजाइलम, टोडालिया अथवा स्किमिया‘ में होता है, तब ये पुंकेसर बाह्यदल सम्मुख होते हैं। डायोस्मा के दलाभिमुख पुंकेसर बंध्य पुंकेसर होते हैं। परागकोष, द्विकोष्ठीय, अंतर्मुखी तथा उनका स्फुटन अनुलंब होता है।
 

जायांग 

       अडंप संख्या 4-5 (अपवाद स्वरूप त्रितयी पुष्पों में 3, जैसे ट्राइफेसिया अथवा नीबू में अनेक) युक्तांडपी, किन्तु अंडाशय पूर्णरूप से कभी जुड़े हुए नहीं होते। इनकी पालियां आसानी से गिनी जा सकती हैं तथा इन पालियों के आधार पर अंडप संख्या भी ज्ञात हो सकती है। हालांकि नीबू में सभी अंडप पूर्ण रूप से जुड़कर एक गोल, सपाट रचना बनाते हैं, फिर भी नीबू की या संतरे की फांकों को गिनकर अंडप संख्या का पता लगाया जा सकता है। अण्डप पूरी तरह से जुड़कर संख्या में एक ही प्रतीत होता है। वर्तिकाग्र फूला हुआ पालीयुक्त होता है।
              अंडाशय ऊर्ध्ववर्ती, उतने ही कोष्ठीय जितनी अंडप संख्या हो तथा बीजाण्डन्यास स्तंभीय । अंडाशय भित्ति में असंख्य तेल ग्रंथियाँ उपस्थित होती हैं।
           प्रति कोष्ठ बीजाण्ड 2,   संपर्षिवक अथवा अध्यारोपित (उदाहरण कॉरिया) अथवा अनेक नथा 2. कतारों में, जैसे डिक्टाम्नस, नीबू इत्यादि।
            कबीठ (Feronia) में अनेक बीजाण्ड तथा भित्तिलग्न बीजाण्डन्यास पाया जाता है।

परागण

                   डिस्क द्वारा मकरंद स्त्रावित होने से तथा सुग् धत पुष्पों के कारण अनेक प्रकार के कीट आकर्षित होते हैं और परपरागण में सहायक होते हैं। इसी तर पुष्प पुंपूर्वी (protrandrous) होने के कारण भी परपरागण होता है।

फल

          अंडप (carpels) किस सीमा तक एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, इस बात पर फल का प्रकार निर्भर करता है। डिक्टाइमस अथवा रूटा में यह भिदुर (साइजोकार्षिक) होता है। यह फल अभ्यक्ष सीवन (ventral suture) से स्फुटित होती है तथा प्रत्येक कोष्ठ में 3-4 बीज होते हैं। बेल-बिल्वपत्र अथवा कबीठ में यह सरस फल होता है, उसके अत्यन्त कठोर कड़े आवरण के कारण उसे ऐम्फिसाराका भी कहते हैं। नीबू वंश में पायी जाने वाली बेरी विशेष प्रकार की होती है, इसे हैस्पेरिडियम (hesperidium) कहते हैं। इसमें एपिकार्प चर्मिल (चमड़े के समान) रहती हैं, मीसोकार्प सफेद धागे जैसी होती है तथा झिल्लीनुमा एन्डोकार्प होता है। इस एन्डोकार्प से रसीले उद्धर्घ निकलते हैं। यह फल का खाने योग्य भाग होता है।
                टाइलिया में फल अष्ठिल होता है तथा टिलीया (Ptelea) में समारा (एक बीज वाला अस्फुटनशील फल जिसको फलभित्ति फैलकर पक्ष या पंख समान हो जाती है)। फ्लिन्डर्सिया में संपुटिका प्रकार का फल होता है।
 
बीज
         बहुत से वंशों में भ्रूणपोष विहीन, जैसे नीबू, डायोस्मा, अथवा भ्रूणपोष युक्त जैसे झेन्थोजाइलम, बोरोनिया इत्यादि। नीबू के बीज में मुख्य भ्रूण के अलावा अनेक (13 तक) अपस्थानिक भ्रूण पाये जाते हैं। इन भ्रूणों की उत्पत्ति बीजाण्डकाय से होती है।

Rutaceae(रूटेसी)
प्रकृति – बड़े आकार की सदाबहार झाड़ी
जड़ – मूसला जड़
तना – वायवीय, ऊर्ध्व, शाखित, काष्ठीय, ठोस, हरा
पत्ती – अननुपत्री, एकान्तरित, सवृन्त, संयुक्त, 3-7 पर्णक, जालिकावत                             शिराविन्यास
पुष्पक्रम – एक्सीलरी अथवा टर्मिनल साइम
पंचतयी – सफेद रंग के, सुगंधित ।
बाह्यदलपुंज – 5 ब्राह्वादल, संयुक्त, कुन्कुनशियल विन्यास
दलपुंज – 5 दल, स्वतंत्र, भालाकार, कोरछादी दल विन्यास
पुमंग – 10 पुंकेसर जो एक गोल व लम्बी डिस्क पर लगे होते हैं, द्विवर्त                     पुंकेसरी, स्वतंत्र परागकोष, द्विकोष्ठीय तथा अंतर्मुखी
जयांग – 2 या 3 अण्डपी, 2-3 कोष्ठीर अण्डाशय, युक्ताण्डपी, उत्तरवर्ती,                       अण्डाशय के नीचे एक डिस्क उपस्थित, अक्षलग्न, बीजाण्डन्या,                       प्रत्येक कोष्ठ में 1-2 बोजाण्ड, वर्तिका पतली
फल – बैरी
पुष्पीय सूत्र – ⊕,♀♂V₅ C₅ A₅˖₅G(2-3)
Rutaceae(रूटेसी)

आर्थिक महत्व

                  खाने योग्य अनेक फलों के कारण यह कुल बहुत अधिक आर्थिक महत्व का है।
1. सिट्रस आरेन्शीफोलिया             कागजी नीबू
2. सिट्रस लिमॉन.                      बड़ा नीबू, गलगल
3. सिट्रस ऑरेन्शियम.                  खट्टा नीबू
4. सिट्रस लिमेटोआइडिस.             मीठा नीबू
5. सिट्रस रेटीकुलेटा                        संतरा
6. सिट्रस साइनेन्सिस.                   मुसम्बी
7. सिट्रस मेक्सीमा                        चिकोत्रा
       सिट्रस की और भी अनेक जातियां हैं तथा सभी विटामिन ‘सी’ से भरपूर हैं। इन फलों के उपयोग सभी जानते हैं।
8. ईगल मारमिलास- 
बेल, बिल्वपत्र पत्तियां शिवजी को चढ़ाई जाती है तथा पके फल का गूदा पेट विकारों में काम आता है।
9. फीरोनिया लिमोनिया
 कथ, कबीठ पके फल के गूदे की चटनी बनाते हैं या वैसे ही खाया जाता है।
10. मुराया कोनिगि
मीठा नीम कढ़ी पन्तादाल या कढ़ी में सुगंध के लिये इसकी पत्तियां उपयोग में लाते हैं।
11. मुराया पेनीकुलेटा
कामिनी-खुशबूदार फूलों के लिये बगीचों में लगाया जाता है।
12. ग्लाइकासमिस पेन्टाफिला
पके फल खाने योग्य तथ पतली शाखाओं से दतून बनता है।
13. जेथोजाइलम एलाटा
तेजबल कालीमिर्च के समान फलों का उपयोग मसालों में किया जाता है तथा शाखाओं से चलने की छड़ी बनती है।
14. रूटा ग्रवियोलेंस
सदाब, सिताफ सूखी पत्तियों से दवा बनती है
15. क्लोरोजाइलान स्वीटीनिया
इसकी लकड़ी से बढ़िया फर्नीचर बनता है तथा विनियर (बल्कुन) करने के काम में आती है।
16. कोआजा टरनेटा
 ये सभी पौधे सुन्दर फलों के लिये बगीचों में लगाये जाते हैं लेकिन समशीतोष्ण स्थान पर उगने वाले होने के कारण दार्जिलिंग, ऊटी, नैनीताल, शिमला इत्यादि स्थानों पर ही देखे जा सकते हैं।
17. लवंगा स्केन्डेंस
लौंगलता-काटेदार बेल होती है जिसमें सुन्दर, सफेद, सुगन्धित पुष्प पाये जाते हैं। प. बंगाल या असाम के बगीचों में मिलते हैं।
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Rajkumar logre

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